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Thursday, August 25, 2011

अन्ना की लड़ाई और आम नागरिक ....

दिल्ली के रामलीला मैदान में अन्ना आम नागरिक को खुशहाल जिन्दगी देने के लिए अनशन पर हैं। मगर आम आदमी अन्ना से सिर्फ भ्रष्टाचार खत्म करने के लिए जुड़ रहा है। वह अन्ना के अनशन में अपने परिवार का अनशन नहीं करना चाहता?? यही दुर्भाग्य है कि जिसके हक के लिए लड़ाई लड़ी जाती है वही उस लड़ाई का दर्शक होता है ...........

Tuesday, January 4, 2011

सब के घर मकड़ियों के जाले थे, सब मेरे देखे-भाले थे....

चरित्र है सुजीवन की कुंजी

चरित्रवान हमेशा अहंकार से दूर रहता है। वह अपनी उपलब्धियों पर इतराता नहीं। वह जीवन की नींद में नहीं बिताता। चरित्रवान मेहनती होता है। वह हमेशा सतर्क रहता है, सावधान रहता है। दुष्टों के साथ से दूर रहता है। बु़द्धिमानों का साथ करता है। ऐसे चरित्रवान व्यक्ति के पास धन-सम्पदा और यश खुद चलकर आते हैं।
छात्र जीवन में ही चरित्रवान बनने की दिशा मिल सकती है। यदि छात्र सुख-सुविधा में पड़ गया। उसका अपने गुस्से में नियंत्रण नहीं है। वह लोभी हो जाता है। स्वाद और चटोरापन उसकी आदत बन जाती है। तो वह कभी चरित्रवान नहीं हो सकता। वह जब इन आदतों का आदी हो जाता है तो आम जीवन में यह सब चीजें हासिल नहीं की जा सकती। फिर क्या होगा? इन्हें हासिल करने के लिए वो दूसरे रास्तों पर चलेगा। यहीं से चरित्र की संभाल की पकड़ ढीली हो जाती है। जो छात्र श्रृंगार यानि सजने-धजने में अपना समय बिताता है, वह सद्गुणों को कभी हासिल नहीं कर सकता। जो छात्र आस-पड़ोस की चमक-दमक और चका-चौंध के बारे में ही सोचता रहता है, वह मेधावी हो नहीं सकता। अधिक समय सोने में और आलस करने वाला छात्र भी चरित्रवान नहीं हो सकता। जो चरित्रवान नहीं है, वह कितना ही बलशाली हो, कितना ही धनवान हो वह आदर का पात्र नहीं होता।
अच्छे चरित्र वाले के लिए अच्छी शिक्षा पाना मुश्किल नहीं है। अच्छी शिक्षा पा चुका छात्र कहीं भी जा सकता है। अच्छे आचरण के कारण अजनबी भी उसके मित्र-बंधु बन जाते है। वह सारी दुनिया में वह यश पाता है। कहीं भी जाकर रोजगार पा सकता है। तब उसे जीवन की रक्षा का भय भी नहीं होता है। यही कारण है कि जीवन को बचाए और बनाए रखने के लिए चरित्रवान होना पहली शर्त है।
हम भूल जाते हैं कि सुजीवन की कुंजी है चरित्र। हम जान कर भी अंजान बन जाते हैं और ऐसा आचरण या कृत्य कर बैठते हैं, जिसके लिए हमारा चित्त हमें रोकता भी है और टोकता भी है। मगर कुछ ऐसा होता है कि हम बुराई की ओर न चाह कर भी बढ़ ही जाते हैं और अपना चरित्र खो बैठते हैं। बस फिर क्या चरित्र की रक्षा की कुंजी हमसे खो जाती है। या यूं कहें कि फिर कोई भी हमारे आचरण रूपी ताले को अपनी कुंजी से खोल लेता है। तब क्या रक्षा और सुरक्षा।
चरित्रवान के लिए कोई री-प्ले नहीं है। कोई री-टेक नहीं है। कोई क्षमा नहीं है। खुद भी अंतर्मन बार-बार धिक्कारता है कि तुमने चरित्र खो दिया। सो हर दिन नहीं, हर पल चरित्र को शीर्ष पर बनाये रखने का यत्न प्राथमिकता में होना ही चाहिए।