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Saturday, December 11, 2010

हम सभी अपने भाग्य का दिया खाते हैं....

किसी जमाने में एक बहुत प्रतापी राजा था। उसकी सात पुत्रियां थी। राजा अपनी सभी पुत्रियों से समान प्यार व स्नेह करता था। साथ ही उन्हें किसी प्रकार की भी कोई कमी नहीं होने देता था। एक बार राजा ने सोचा मैं अपनी सभी पुत्रियों व कर्मचारियों को सारी सुख-सुविधा मुहैया कराता हूं , तथा वो सब करता हूं जिसकी जरुरत उन्हें होती हैं। तो क्यों न मैं उनसे इस संबंध में राय लूं कि क्या मैं जो तुम्हारे लिए सभी जरुरतों को समझकर उसे पूरा करता हूं। यह मेरे द्वारा किया गया है आप इस पर क्या प्रतिक्रिया रखते हैं? उन्होंने अपने सभी कर्मचारियों से पूछा तथा अपने पुत्रियों की भी राय मांगी सभी ने इसका उत्तर अपने-अपने शब्दों में दिया, साथ ही कहा की यह तो आपकी ही कृपा है जो आज हम सभी इतने सुखी और संपन्न हैं। सब आपका है और आपका ही किया हुआ है।
राजा बड़ा खुश था। लेकिन राजा की जो सबसे छोटी पुत्री थी उसने इस प्रश्न का बिलकुल उलट और विपरीत उत्तर देते हुए कहा ( हे राजन, मेरे पिता, यह सही है कि यह सब कुछ आपके द्वारा ही दिया गया है लेकिन जितना भी हमें मिला है वह सब कुछ हमारे भाग्य ने हमें दिलाया है, आप तो एक माध्यम स्वरुप बस थे।) हम सभी अपने भाग्य से खाते हैं भाग्य से ही हम जीवन की हर पहलूओं को देख पाते हैं।
राजा इतना सुनते ही क्रोधित हो उुठा और अपनी छोटी पुत्री की बातों से असहमती जताई। कुछ समय बाद जब राजा ने अपनी पुत्रियों का विवाह कराया तो अपनी सभी पुत्रियों का विवाह राज्य के धनि-मानी राजाओं व योग्य पुरुषों से कराया। परंतु अपनी छोटी पुत्री का विवाह उसने गरीब व अयोग्य युवक से करा दिया। और राजा ने कहा अब बताना कौन अपने भाग्य का खाता है।
बहुत समय बीत गया राजा ने सोचा अब अपनी सभी पुत्रियों से मिल आते हैं क्या हाल है कैसे हैं सभी ? राजा सबसे मिला सभी पुत्रियों में किसी की भी हालत पहले जैसे नहीं रही थी, सब गरीब हो रुके थे सभी राजाओं की सत्ता समाप्त हो चुकी थी। वह बड़ा दुखी हुआ। वह दुखी मन से जा ही रहा था की जंगल में उसे एक आलीशान महल दिखा वह वही रुक गया और अंदर जाने लगा। इससे पहले वह सोच भी रहा था की मैं अपनी छोटी पुत्री से कहा मिलू वह किस हालत में होगी। जब मेरी सभी पुत्रियों की दयनीय हालत है तो उसकी कैसी होगी। यही सोचते वह महल में प्रवेश करता है और चौंक पड़ता है? क्योंकि राजा ने उस महल में अपनी छोटी पुत्री को अच्छे पहनावे-ओढ़ावे के साथ अपने परिचारिकाओ के साथ देखा।
अपने पिता को देखकर वह संस्कार भाव से राजा के नजदीक आकर हालचाल पुछती है साथ ही राजा ने भी पुत्री की पुरी कहानी सुनी। अनेक कठिनाइयों के बाद वह आज इस मुकाम पर पहुच पाई थी। तब राजा से उसकी पुत्री ने कहा अब आप ही बताईयें पिताश्री यह तो मेरे भाग्य ने ही हमें इतना सबकुछ दिलाया है। हम सभी अपने भाग्य का ही खाते हैं???????

4 comments:

  1. इस नए और सुंदर से चिट्ठे के साथ हिंदी ब्‍लॉग जगत में आपका स्‍वागत है .. नियमित लेखन के लिए शुभकामनाएं !!

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  2. कभी कभी यही लगता है भाग्य का ही खेल है सब ...
    स्वागत एवं शुभकामनायें ...

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  3. हार्दिक शुभकामनाएं

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